मुझे फूल मत मारो,
मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो।
होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो,
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।
नही भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो!
रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
लो, यह मेरी चरण-धूलि उस रति के सिर पर धारो!
~ मैथिलीशरण गुप्त
यह गीत साकेत महाकाव्य से लिया गया है, अयोध्या के राज महल में राजसी श्रृंगार है और उर्मिला अकेली है। चारो ओर श्रृंगार का वातावरण है और उर्मिला को कदाचित लगता है कि कामदेव उसे विचलित करने की कोशिश कर रहा है और वह कामदेव से कह रही है:
मुझे फूल मत मारो = हे कामदेव मुझे फूलों के धनुष से तीर न मारों (माना जाता है कि कामदेव के पास फूलों का धनुष है। अपने इस धनुष के तीरों से वह काम तथा रूप लालसा की भावना जागृत करता है)।
दया विचारो=हे कामदेव! मेरे प्रति दया- भाव रखों, अर्थात् मुझे अपने प्रभाव से मुक्त रहने दो। मदन = कामदेव।
कटु गरल न गारो=तुम तो आनन्द की सृष्टि करने वाले हो, तुम्हारा आनन्द, मिलन की अवस्था में ही भला लगता है, विरह की अवस्था में तो तुम्हारा आगमन विष घोलने के समान है।
मुझे विकलता=मैं विरह में विकल हूँ।
विफलता=तुम मेरे ऊपर प्रभाव न डाल सकोगे
श्रम परिहाओ=व्यर्थ में श्रम न करो
नहीं भोगनी=मैं भोग विलास में लिप्त होने वाली नहीं
जाल=काम का जाल
बल हो=सामर्थ्य हो
सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो= मेरा यह सिंदूर बिंदु शंकर के तीसरे नेत्र के समान है। कथा है कि शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोल कर कामदेव को भस्म कर दिया था इसी प्रकार उर्मिला भी अपने क्रोध में कामदेव को जला कर भस्म कर देगी
रूप-दर्प= रूप का घमण्ड, कामदेव को सबसे सुंदर माना गया है
कंदर्प=कामदेव
मेरे पति पर वारो=कामदेव! माना कि तुम सबसे सुंदर हो लेकिन लक्ष्मण के रूप के आगे तुम्हारा रूप कुछ भी नहीं है। उनके रूप पर तुम्हे न्योछावर किया जा सकता है,
लो यह मेरी चरण धूलि= मेरे चरणों की धूलि ले रति (अपनी पती) के माथे पर लगा दो ताकि उसका जीवन भी सुधर जाये
Mar 10, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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