तुम याद मुझे आ जाते हो
जब सेहन-ए-चमन में कलियाँ खिल कर फूल की सूरत होती हैं
और अपनी महक से हर दिल में इक तुख़्म-ए-लताफ़त बोती हैं
जब मेंह की फुवारें पड़ती हैं जब ठंडी हवाएँ आती हैं
जब सेहन-ए-चमन से घबरा कर पी पी की सदाएँ आती हैं
तुम याद मुझे आ जाते हो
* सेहन-ए-चमन=आँगन के बग़ीचे में; तुख़्म-ए-लताफ़त=सुंदरता के बीज
जब चौदवीं शब का चाँद निकल कर दहर मुनव्वर करता है
जब कोई मोहब्बत का मारा कुछ ठंडी साँसें भरता है
जब चार निगाहें कर के कोई महव-ए-तबस्सुम होता है
जब कोई मोहब्बत का मारा उस कैफ़ में पड़ कर खोता है
तुम याद मुझे आ जाते हो
*दहर=दुनिया; मुनव्वर=रौशन; महव-ए-तबस्सुम=मुस्कान पर मिट जाना; क़ैफ़=नशा
जब रात की ज़ुल्मत घटती है जब सुब्ह का नूर उभरता है
जब कोयल कूकू करती है जब पंछी पी पी करता है
जब कोई किसी का हाथ पकड़ कर सैर को बाहर जाता है
जब कोई निगाह-ए-शौक़ के आगे रह रह कर घबराता है
तुम याद मुझे आ जाते हो
अफ़्लाक पे जब ये लाखों तारे जगमग जगमग करती हैं
जब तारे गिन गिन कर दिल वाले ठंडी साँसें भरते हैं
जब रात का बढ़ता है सन्नाटा चैन से दुनिया सोती है
तब आँख मिरी खुल जाती है और दिल की रग रग रोती है
तुम याद मुझे आ जाते हो
*अफ़्लाक=आसमान
जब बरखा की रुत आती है जब काली घटाएँ उठती हैं
जिस वक़्त कि रिंदों के दिल से हू-हक़ सदाएँ उठती हैं
जब रोता है बहज़ाद-ए-'हज़ीं' वो शाइ'र वो दीवाना सा
वो दिल वाला वो सौदाई वो दुनिया से बेगाना सा
तुम याद मुझे आ जाते हो
*रिंद=शराब पीने वाला; हू-हूक़=उजाड़; सदाएँ=आवाज़ें; सज़ीं=दुखी; सौदाई=पागल
~ बहज़ाद लखनवी
Jan 04, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment