दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे,
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे।
वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे,
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे।
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है,
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही,
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे ।
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है,
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे।
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा,
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे ।
हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम,
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे ।
~ बशीर बद्र
April 07, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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