शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता,
सच मुँह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता।
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन,
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता।
*परस्तिश=पूजा, आराधना
माथे के पसीने की महक आये न जिस से,
वो ख़ून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता।
*गर्दिश=घुमाव, चक्कर
हमदर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र',
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता।
*हमदर्दी-ए-अहबाब=दोस्तों की सहानुभूति
~ मुज़फ़्फ़र वारसी
April 03, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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