सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं
*रब्त=लगाव
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं
*चश्म-ए-नाज़= प्रेयसी की आँखें
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं
*शग़फ़=लगाव; मो’जिज़े=चमत्कार
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं
*काकुलें=लटें
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
*सियह-चश्मगी=काली आँखें; सुरमा-फ़रोश=सुरमा बेचने वाले
सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं
सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस की
जो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं
*तिमसाल=तस्वीर; जबीं=माथा
सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं
*हमाइल=गले मे पहनी हुई; लाल ओ गुहर=मणिक और मोती
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
*चश्म-ए-तसव्वुर=कल्पना करने वाली आँखें; दश्त-ए-इम्काँ=सम्भावनाओं का जंगल; पलंग=पतली कमर वाला एक जंगली जानवर, तेंदुआ; ज़ाविए=नज़रिये से
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
*क़बाएँ=पहनावा
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
*सर्व-क़द=लम्बे कद वाला; बे-गुल-ए-मुराद=बिना संतुष्टि के फल के; समर=फल
बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
* रह-रवान-ए-तमन्ना=तमन्ना के सह-यात्री
सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जल्वे इधर के देखते हैं
*शबिस्ताँ=शयनग्रह; मुत्तसिल=पास; बहिश्त=स्वर्ग; मकीं=मकान में रहने वाला
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं
*तवाफ़=परिक्रमा
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं
*बे-पैरहन=निर्वस्त्र
कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
*मुबालग़े=अतिश्योक्ति
अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
~ अहमद फ़राज़
Feb 3, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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