मेरे गीतों में मोहब्बत ने जलाए हैं चराग़
और यहाँ ज़ुल्मत-ए-ज़रदार के घेरे हैं तमाम
सब के होंटों पे हवसनाक उमीदों की बरात
कोई लेता नहीं उल्फ़त भरे गीतों का सलाम
ऐ मिरे गीत! कहीं और ही चलना होगा
*ज़ुल्मत-ए-ज़रदार=पैसेवालों की यातना; हवसनाक=चाहतों से भरी
तुझ को मालूम नहीं आदम ओ हव्वा की ज़मीं
अपने नासूर को पर्दे में छुपाने के लिए
गुल किए देती है अफ़्कार के मासूम चराग़
हर नफ़स अपने गरेबान पे रखती है नज़र
जिस में इक तार भी बाक़ी नहीं पर्दे के लिए
ऐ मिरे गीत! कहीं और ही चलना होगा
*अफ़्कार=चिंताएँ; नफ़स=रूह
आ कहीं और किसी देश को ढूँडें चल कर
हो जहाँ भूक न अफ़्कार के पर्दों पे मुहीत
वक़्त डाले न जहाँ क़ैद में फ़िक्रों का जमाल
प्यार के बोल को अपनाए जहाँ सारी ज़मीं
आ उसी देश में फैलाऊँ तिरे प्यार का नूर
ऐ मिरे गीत! कहीं और ही चलना होगा
*मुहीत=व्याप्त, फैला हुआ
ये भी मुमकिन है कि झोली में अमल की इक रोज़
यास की ख़ाक हो और दूर हो अपनी मंज़िल
आरज़ूओं का कोई देश न मिल पाए अगर
मेरे सीने में उतर जा कि यहाँ कोई नहीं
जो तिरे नूर को पैग़ाम को समझे आ कर
ऐ मिरे गीत कहीं और ही चलना होगा
*रोज़ के काम; यास=निराशा
~ अनवर नदीम
Feb 9, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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