तग़ाफ़ुल और करम दोनों बराबर काम करते थे
जिगर के ज़ख़्म भरते थे तो दिल के दाग़ उभरते थे
*तग़ाफ़ुल=उपेक्षा; करम=कृपा
ख़ुदा जाने हमें क्या था कि फिर भी उन पे मरते थे
जो दिन भर में हज़ारों वा'दे करते थे मुकरते थे
न पूछो उन की तस्वीर-ए-ख़याली की सजावट को
उधर दिल रंग देता था इधर हम रंग भरते थे
*तस्वीर-ए-ख़याली=काल्पनिक छवि
मोहब्बत का समुंदर उस की मौजें ऐ मआ'ज़-अल्लाह
दिल इतना डूबता जाता था जितना हम उभरते थे
*मआ'ज़-अल्लाह=ईश्वर रक्षा करे
अजब कुछ ज़िंदगानी हो गई थी हिज्र में अपनी
न हँसते थे न रोते थे न जीते थे न मरते थे
*हिज्र=वियोग
शहीदान-ए-वफ़ा की मंज़िलें तो ये अरे तो ये
वो राहें बंद हो जातीं थीं जिन पर से गुज़रते थे
*शहीदान-ए-वफ़ा=शहीदों की वफ़ा
न पूछो उस की बज़्म-ए-नाज़ की कैफ़िय्यतें 'मंज़र'
हज़ारों बार जीते थे हज़ारों बार मरते थे
*बज़्म-ए-नाज़=शोख़ लोगों की महफ़िल; कैफ़िय्यत=अवस्था
~ मंज़र लखनवी
जिगर के ज़ख़्म भरते थे तो दिल के दाग़ उभरते थे
*तग़ाफ़ुल=उपेक्षा; करम=कृपा
ख़ुदा जाने हमें क्या था कि फिर भी उन पे मरते थे
जो दिन भर में हज़ारों वा'दे करते थे मुकरते थे
न पूछो उन की तस्वीर-ए-ख़याली की सजावट को
उधर दिल रंग देता था इधर हम रंग भरते थे
*तस्वीर-ए-ख़याली=काल्पनिक छवि
मोहब्बत का समुंदर उस की मौजें ऐ मआ'ज़-अल्लाह
दिल इतना डूबता जाता था जितना हम उभरते थे
*मआ'ज़-अल्लाह=ईश्वर रक्षा करे
अजब कुछ ज़िंदगानी हो गई थी हिज्र में अपनी
न हँसते थे न रोते थे न जीते थे न मरते थे
*हिज्र=वियोग
शहीदान-ए-वफ़ा की मंज़िलें तो ये अरे तो ये
वो राहें बंद हो जातीं थीं जिन पर से गुज़रते थे
*शहीदान-ए-वफ़ा=शहीदों की वफ़ा
न पूछो उस की बज़्म-ए-नाज़ की कैफ़िय्यतें 'मंज़र'
हज़ारों बार जीते थे हज़ारों बार मरते थे
*बज़्म-ए-नाज़=शोख़ लोगों की महफ़िल; कैफ़िय्यत=अवस्था
~ मंज़र लखनवी
Submitted by: Ashok Singh
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