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Sunday, October 4, 2020

कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो

 


कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो सुब्ह-ए-बहाराँ देखो
दोस्तो नग़्मागरो रक़्स-ए-ग़ज़ालाँ देखो
*कुंज-ए-इज़्ज़त=अपने आप से बाहर; नग़्मागरो=गाने वाला; रक़्स-ए-ग़ज़ालाँ=हिरनों का नृत्य

मिट गया राह-गुज़ारों से हर इक नक़्श-ए-ख़िज़ाँ
वरक़-ए-गुल पे लिखे अब नए उनवाँ देखो
*राह-गुज़ारों=पथिक; नक़्श-ए-ख़िज़ाँ=पतझड़ के निशान

मुतरिबाँ बहर-ए-क़दम-बोसी-ए-शीरीं-सुख़नाँ
महफ़िल-ए-गुल में चलो जश्न-ए-बहाराँ देखो
*मुतरिबाँ=गाने, नाचने वाले; बहर-ए-क़दम-बोसी-ए-शीरीं-सुख़नाँ=मीठी ज़ुबान वाले के पैर चूमना


मुज़्दा फिर ख़ाक-ए-ख़िज़ाँ-रंग की क़िस्मत जागी
आ गया झूम के अब्र-ए-गुहर-अफ़्शाँ देखो
*मुज़्दा=ख़ुश ख़बर; ख़ाक-ए-ख़िज़ाँ-रंग=पतझड़ के रंग की धूल; अब्र-ए-गुहर-अफ़्शाँ=मोतियों की तरह चमकता बादल

हम-नवा हो के मिरे तुम भी ग़ज़ल-ख़्वाँ हो जाओ
जो लब-ए-जू-ए-रवाँ सर्व-ख़िरामाँ देखो
*हम-नवा=समर्थक; ग़ज़ल-ख़्वाँ=ग़ज़ल कहने वाला; लब-ए-जू-ए-रवाँ=बहती धारा का श्रोत; सर्व-ख़िरामाँ=वृक्ष के आकार का काँच का झाड़ जिसमें मोमबत्तियाँ जलती हैं

ये जुलूस-ए-गुल-ओ-रैहाँ है कहाँ नारा-ज़नाँ
उठ के दरवाज़े से बाहर तो मिरी जाँ देखो
*जुलूस-ए-गुल-ओ-रैहाँ=मीठी सुगंध वाले पौधे; नारा-ज़नाँ=नारेबाज़ी

~ रज़ी तिर्मिज़ी 

Oct 05, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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