मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
आ जुदाई ख़ूब नईं मिल जा सजन
बे-दिलों की उज़्र-ख़्वाही मान ले
जो कि होना था सो हो गुज़रा सजन
तुम सिवा हम कूँ कहीं जागा नहीं
पस लड़ो मत हम सेती बेजा सजन
मर गए ग़म सीं तुम्हारे हम पिया
कब तलक ये ख़ून-ए-ग़म खाना सजन
जो लगे अब काटने इख़्लास के
क्या यही था प्यार का समरा सजन
*इख़्लास=निश्छलता
छोड़ तुम कूँ और किस सें हम मिलें
कौन है दुनिया में कुइ तुम सा सजन
पाँव पड़ता हूँ तुम्हारे रहम को
बात मेरी मान ले हा हा सजन
तंग रहना कब तलक ग़ुंचे की तरह
फूल के मानिंद टुक खुल जा सजन
'आबरू' कूँ खो के पछताओगे तुम
हम को लाज़िम है अता कहना सजन
~ आबरू शाह मुबारक
Jan 08, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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