Disable Copy Text

Thursday, March 30, 2023

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है


रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है।
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में,
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है, चल पड़ता है।
अपनी ता'बीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब,
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है।
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
~ राहत इंदौरी

March 30, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh 

 

No comments:

Post a Comment