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Tuesday, February 28, 2023

अहाहाहा अहाहाहा

 

मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा
अजब आलम है मस्ती का अहाहाहा अहाहाहा
*यकजा=एक साथ

बहार आई तुड़ाने फिर लगे ज़ंजीर दीवाने
हुआ शोर-ए-जुनूँ बरपा अहाहाहा अहाहाहा

जिन आँखों ने न देखा था कभी यक अश्क का क़तरा
चले हैं उस से अब दरिया अहाहाहा अहाहाहा

मिरे घर इस हवा में साक़ी-ओ-मुत्रिब अगर होते
तो कैसे मय-कशी करता अहाहाहा अहाहाहा
*साक़ी-ओ-मुत्रिब=शराब पिलानेवाला (ली) और संगीतज्ञ

किया 'बेदार' से आशिक़ को तू ने क़त्ल ऐ ज़ालिम
कोई करता है काम ऐसा अहाहाहा अहाहाहा  

~  मीर मोहम्मदी बेदार

Feb 28, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh 

 

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