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Thursday, March 30, 2023

शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है



तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है,
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है।
*शब=रात्रि
जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री है,
अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है।
*ब-कार=व्यस्त
हुई है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तुगू जिस शब,
वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है।
*हज़रत-ए-नासेह=उपदेशक; सर-ए-कू-ए-यार=प्रेमिका की गली की ओर
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था,
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है।
न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है,
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है।
चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़री,
क़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है।
*ग़ारत=लूटपाट; गुल-चीं=माली; क़फ़स=पिंजरा; सबा=प्रात: की हवा
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

March 30, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh 

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