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Thursday, February 19, 2015

मैं आज के इन्सानों की बात कहूं



मैं आज के इन्सानों की बात कहूं
ये सब हैं करंसी नोटों की तरह
कोई पाऊंड या चांदी का सिक्का नहीं
जज़बात से खाली हैं मशीनों की तरह

सुबह से शाम तक ये मेज़ों पे झुके रहते हैं
कुछ भी इन्हें मालूम नहीं दिन की कहानी
कब रात ने सूरज को सुलाया अपने आंचल में
ज़िन्दगी यूं मिटा दी काग़ज़ में लुटा दी जवानी

~ कृष्ण बेताब
   Feb 15, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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