वो दर खुला मेरे गमकदे का
वो आ गए मेरे मिलनेवाले
वो आ गयी शाम, अपनी राहों में
फ़र्शे-अफ़सुर्दगी बिछाने
*फ़र्शे-अफ़सुर्दगी=उदासी का फ़र्श
वो आ गयी रात चाँद-तारों को
अपनी आज़ुर्दगी सुनाने
वो सुब्ह आयी दमकते नश्तर से
याद के ज़ख्म को मनाने
वो दोपहर आयी, आस्तीं में
छुपाये शोलों के ताज़याने
*आज़ुर्दगी=उदासी; ताज़ियाना=चाबुक
ये आये सब मेरे मिलने वाले
कि जिन से दिन-रात वास्ता है
ये कौन कब आया, कब गया है
निगाहो-दिल को खबर कहाँ है
ख़याल सू-ए-वतन रवाँ है
समन्दरों की अयाल थामे
हज़ार वहमो-गुमाँ सँभाले
कई तरह के सवाल थामे
*सू-ए-वतन=वतन की ओर; अयाल= घोड़े की गर्दन के लंबे बाल
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Feb22, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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