सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ !
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
~ नरेन्द्र शर्मा
Feb 3, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ !
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
~ नरेन्द्र शर्मा
Feb 3, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
No comments:
Post a Comment