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Wednesday, February 4, 2015

आज के बिछुड़े न जाने

सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ !
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?

~ नरेन्द्र शर्मा


   Feb 3, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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