कहाँ है वो चेहरा, गुलाबी चेहरा
जिसको देखकर चाँद भी रश्क़ करता है
कहाँ हैं वो ज़ुल्फों की लटें
जो तेरे माथे पे सबा के साथ मचलती हैं
उन्स करती हैं
*रश्क़=ईर्ष्या; सबा=हवा; उन्स=लगाव
कहाँ है वो तेरे माथे की छोटी-सी बिंदिया
जिसका गहरा रंग तेरे हुस्न में चार चाँद लगाता है
कहाँ हैं वो आँखें झील-सी गहरी आँखें
जिनकी खा़हिश में हर रात ख़्वाबीदा हुआ करती है
*ख़्वाहिश=तमन्ना; ख़्वाबीदा: स्वप्निल
कहाँ हैं वो लब जो तितलियों के परों से नाज़ुक़ हैं
छोटी-छोटी बात पे खिलते हैं
कहाँ हैं वो गुलाबी रोशनाइयाँ
जिनसे सुबह होती है, कलियाँ चटकती हैं’ महकती हैं
कहाँ हैं वो हाथ, मरमरीं हाथ
जिन्हें मेरे हाथों में होना चाहिए
कहाँ हैं वो पाँव, हसीन पाँव
जिन्हें मेरे घर की फ़र्श पर होना चाहिए
कहाँ हैं तू, आज तू कहाँ है?
मेरे जिस्मो-ज़हन के सिवा तू कहीं दिखती ही नहीं
खा़मोश ये लब आज भी बेक़रार हैं
तुमसे कुछ कहने के लिए…
*जिस्मो-ज़हन=शरीर (दिल) और दिमाग
गर जो तुमसे मुनासिब हो
तुम आज ही लौट आओ
~ विनय प्रजापति 'नज़र'
Feb 25, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत-बहुत शुक्रिया
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