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Saturday, March 3, 2018

नयनों के डोरे लाल-गुलाल

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नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे खेली होली।

जागी रात सेज प्रिय पति सँग, रति सनेह-रँग घोली,
दीपित दीप, कंज छवि मंजु मंजु हँस खोली
मली मुख-चुम्बन-रोली।
*कंज=केश; मंजु=मोहक

प्रिय, कर कठिन उरोज, परस, कस कसक मसक गई चोली,
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली
कली-सी काँटे की तोली।
*वसन=वस्त्र, कमरबंद; दशन=दाँत

मधु ऋतु रात, मधुर अधरों की, पी मधु सुध-बुध खोली,
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली
बनी रति की छवि भोली।
*अलक=सिर से लटकते बाल

बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
रही यह एक ठिठोली।

~ सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'


  Mar 2, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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