अल्ताफ़-ओ-करम ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब कुछ भी नहीं है
था पहले बहुत कुछ मगर अब कुछ भी नहीं है
*अल्ताफ़-ओ-करम=अनुग्रह व कृपा; ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब=तमक और रोष
बरसात हो सूरज से समुंदर से उगे आग
मुमकिन है हर इक बात अजब कुछ भी नहीं है
दिल है कि हवेली कोई सुनसान सी जिस में
ख़्वाहिश है न हसरत न तलब कुछ भी नहीं है
अब ज़ीस्त भी इक लम्हा-ए-साकित है कि जिस में
हंगामा-ए-दिन गर्मी-ए-शब कुछ भी नहीं है
*जीस्त=जीवन; लम्हा-ए-साकित=एक चुप्पी भरा पल; हंगामा-ए-दिन=रौनकों से भरा दिन; गर्मी-ए-शब=लिप्सा से भरी रातें
सब क़ुव्वत-ए-बाज़ू के करिश्मात हैं 'राही'
क्या चीज़ है ये नाम-ओ-नसब कुछ भी नहीं है
*कुव्वत-ए-बाज़ू=बाज़ुओं की ताकत; नाम-ओ-नसब=नाम और कुल
~ महबूब राही,
Nov 16, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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