तेरा चेहरा सादा काग़ज़
है तअस्सुर कोरा कोरा
दाग़ है कोई न कोई नक़्श है!
क्यूँ ये खिड़की बंद है?
*तअस्सुर=भाव, मुद्रा; नक़्स=चिन्ह
आ तुझे अपने लबों से चूम कर
तेरे चेहरे को बना दूँ एक अच्छी सी बयाज़
ताकि इस पर हरी घड़ी बनते रहें मिटते रहें
तेरे अंदर घूमते फिरते हुए
ना-शुनीदा और ना-गुफ़्ता हुरूफ़
*बयाज़=कविता लिखने की पुस्तिका; ना-शुनीदा=अन-सुने; ना-गुफ़्ता=अन-कहे; हुरूफ़=शब्द
आ ये खिड़की खोल दूँ
ताकि तेरा अंदरूँ
(तेरी पलकों की चिक़ों तक ही सही) बाहर तो आए
सादा काग़ज़ पर कोई तहरीर हो
चौखटे में कोई तो तस्वीर हो
*तहरीर=लिखावट
वर्ना ये बन जाएगा अख़बार
कारोबार-ए-ईन-ओ-आँ का इश्तिहार
वक़्त के तलवों से क़तरा क़तरा ख़ूँ
तेरे चेहरे पर टपकता जाएगा जम जाएगा
ना-शुनीदा और ना-गुफ़्ता हुरूफ़
गड्ड-मडा जाएँगे हो जाएँगे जम्बल-अप' बहम
*ईन-ओ-आँ=इनका और उनका; जम्बल-उप (jumple-up)=बेतरतीब; बहम=आपस में
बंद खिड़की के पटों पर शोख़ लड़के
कुछ का कुछ लिखते रहेंगे
~ अमीक़ हनफ़ी
Nov 30, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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