सोने वालो जागो
जागो सोने वालो जागो
वक़्त के खोने वालो जागो
बाग़ में चिड़ियाँ बोल रही हैं
कलियाँ आँखें खोल रही हैं
फूल ख़ुशी से झूम रहे हैं
पत्तों का मुँह चूम रहे हैं
जाग उठे दरिया और नहरें
जाग उठीं मौजें और लहरें
नाव चलाने वाले जागे
पार लगाने वाले जागे
सारी दुनिया जाग रही है
काम की जानिब भाग रही है
लिखने पढ़ने वालो जागो
फूलने बढ़ने वालो जागो
वक़्त के खोने वालो जागो
मुँह धो-धा कर नाश्ता खाओ
बस्ता ले कर मदरसे जाओ
सुब्ह का सोना ख़ूब नहीं है
अच्छा ये उस्लूब नहीं है
जागो सोने वालो जागो
वक़्त के खोने वालो जागो
*उस्लूब=आचरण, व्यवहार
~ हफ़ीज़ जालंधरी
Nov 21, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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