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Friday, May 17, 2019

अर्पित तुमको मेरी आशा

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अर्पित तुमको मेरी आशा और निराशा और पिपासा।

एक तुम्हारे बतलाए थे,
विचरण को सौ ठौर, बसेरे
को केवल गलबाँह तुम्हारी,
अर्पित तुमको मेरी आशा और निराशा और पिपासा।

ऊँचे-ऊँचे लक्ष्य बनाकर
जब जब उनको छूकर आता,
हर्ष तुम्हारे मन का मेरे
मन का प्रतिद्वंदी बन जाता,
और जहाँ मेरी असफलता
मेरी विह्वलता बन जाती,
वहाँ तुम्हारा ही दिल बनता मेरे दिल का एक दिलासा
अर्पित तुमको मेरी आशा और निराशा और पिपासा।

~ हरिवंशराय बच्चन

 May 17, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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