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Sunday, October 6, 2019

दिल के रू-ब-रू न रहे


सबा में मस्त-ख़िरामी गुलों में बू न रहे
तिरा ख़याल अगर दिल के रू-ब-रू न रहे
*सबा=सुबह की हवा; मस्त-ख़िरामी=नशीली चाल; रू-ब-रू=आमने सामने

तिरे बग़ैर हर इक आरज़ू अधूरी है
जो तू मिले तो मुझे कोई आरज़ू न रहे

है जुस्तुजू में तिरी इक जहाँ का दर्द-ओ-निशात
तो क्या अजब कि कोई और जुस्तुजू न रहे
*दर्द-ओ-निशात=दर्द और सुख

तिरी तलब से इबारत है सोज़-ओ-हयात
हो सर्द आतिश-ए-हस्ती जो दिल में तू न रहे
*सोज़-ओ-हयात=जीने की लालसा; आतिश-ए-हस्ती=अस्तित्व की आग

तू ज़ौक़-ए-कम-तलबी है तो आरज़ू का शबाब
है यूँ कि तू रहे और कोई जुस्तुजू न रहे
*ज़ौक़-ए-कम-तलबी=कम पा कर ख़ुश रहने की आदत

ख़ुदा करे न वो उफ़्ताद आ पड़े हम पर
कि जान-ओ-दिल रहें और तेरी आरज़ू न रहे
*उफ़्ताद=आपत्ति

तिरे ख़याल की मय दिल में यूँ उतारी है
कभी शराब से ख़ाली मिरा सुबू न रहे

वो दश्त-ए-दर्द सही तुम से वास्ता तो रहे
रहे ये साया-ए-गेसू-ए-मुश्क-बू न रहे
*दश्त-ए-दर्द=दर्द का सहरा(जंगल); साया-ए-गेसू-ए-मुश्क-बू=कस्तूरी ख़ुशबू वाली ज़ुल्फों का साया

नहीं क़रार की लज़्ज़त से आश्ना ये वजूद
वो ख़ाक मेरी नहीं है जो कू-ब-कू न रहे
*कू-ब-कू=हर इक कोने में

इस इल्तिहाब में कैसे ग़ज़ल-सरा हो कोई
कि साज़-ए-दिल न रहे ख़ू-ए-नग़्मा-जू न रहे
*इल्तिहाब=आग भड़कना; ग़ज़ल-सरा=ग़ज़ल लिखने/पढने वाला; ख़ू-ए-नग़्मा-जू=संगीत का चाहक

सफ़र तवील है इस उम्र-ए-शो'ला-सामाँ का
वो क्या करे जिसे जीने की आरज़ू न रहे
*तवील=लम्बा

~ साजिदा ज़ैदी

 Oct 06, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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