फूलों पे रक़्स और न बहारों पे रक़्स कर
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद में ख़ारों पे रक़्स कर
हो कर जुमूद-ए-गुलशन-ए-जन्नत से बे-नियाज़
दोज़ख़ के बे-पनाह शरारों पे रक़्स कर
*रक़्स=नृत्य; गुलज़ार=चमन; हस्त-ओ-बूद=कल और आज; जुमूद=जमे हुए (निष्क्रिय); बे-नियाज़=उदासीन; शरारों=चिंगारी
शम-ए-सहर फुसून-ए-तबस्सुम, हयात-ए-गुल
फ़ितरत के इन अजीब नज़ारों पे रक़्स कर
तंज़ीम-ए-काएनात-ए-जुनूँ की हँसी उड़ा
उजड़े हुए चमन की बहारों पे रक़्स कर
*शम-ए-सहर=सुबह का दीप; फुसून-ए-तबस्सुम-मुस्कुराहट
तंज़ीम=नियम कानून; कायनात-ए-जुनूँ=प्रकृति का उन्माद
सहमी हुई सदा-ए-दिल-ए-ना-तवाँ न सुन
बहकी हुई नज़र के इशारों पर रक़्स कर
जो मर के जी रहे थे तुझे उन से क्या ग़रज़
तू अपने आशिक़ों के मज़ारों पे रक़्स कर
*सदा=आवाज़; ना-तवाँ=कमज़ोर
हर हर अदा हो रूह की गहराइयों में गुम
यूँ रंग-ओ-बू की राह-गुज़ारों पे रक़्स कर
तू अपनी धुन में मस्त है तुझ को बताए कौन
तेरी ज़मीं फ़लक है सितारों पर रक़्स कर
*राह-गुज़ारों=राही
इस तरह रक़्स कर कि सरापा असर हो तू
कोई नज़र उठाए तो पेश-ए-नज़र हो तू
*सरापा=सर से पाँव तक; पेश-ए-नज़र= का कारण
~ शकील बदायुनी
Oct 19, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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