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Saturday, October 5, 2019

जंगलों का दस्तूर

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सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है 
सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता
दरख़्तों की घनी छाँव में जा कर लेट जाता है

हवा के तेज़ झोंके जब दरख़्तों को हिलाते हैं
तो मैना अपने बच्चे छोड़ कर
कव्वे के अंडों को परों से थाम लेती है

सुना है घोंसले से कोई बच्चा गिर पड़े तो सारा जंगल जाग जाता है
सुना है जब किसी नद्दी के पानी में
बए के घोंसले का गंदुमी रंग लरज़ता है
तो नद्दी की रुपहली मछलियाँ उस को पड़ोसन मान लेती हैं

*गंदुमी=गेहुँआ

कभी तूफ़ान आ जाए, कोई पुल टूट जाए तो
किसी लकड़ी के तख़्ते पर
गिलहरी, साँप, बकरी और चीता साथ होते हैं
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है

ख़ुदावंदा! जलील ओ मो'तबर! दाना ओ बीना! मुंसिफ़ ओ अकबर!
मिरे इस शहर में अब जंगलों ही का कोई क़ानून नाफ़िज़ कर!

*ख़ुदावंदा=ईश्वर;
*जलील=मोहतरम, मान्यवर; मो’तबर=भरोसेमंद;
*दाना=अक़्लमंद, सीखे हुए; बीना=दूरदृष्टि वाले
*मुंसिफ़=न्याय करने वाले; अकबर=महान
*नाफ़िज़=ज़ारी करना

~ ज़ेहरा निगाह

 Oct 05, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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