Disable Copy Text

Saturday, February 22, 2020

चाँद हवा और मैं

 
घूम रहे हैं आँगन आँगन चाँद हवा और मैं
ढूँड रहे हैं बिछड़ा बचपन चाँद हवा और मैं

भूला-बिसरा अफ़्साना हैं आज उस के नज़दीक
कल तक थे जिस दिल की धड़कन चाँद हवा और मैं

ख़्वाबों से बे-नाम जज़ीरों में घूमे सौ बार
यादों का थामे हुए दामन चाँद हवा और मैं
*जज़ीरों=द्वीपों

अपने ही घर में हैं या सहरा में गर्म-ए-सफ़र
क्यूँकर सुलझाएँ ये उलझन चाँद हवा और मैं

आज के दौर में अपनी ही पहचान हुई दुश्वार
देख रहे हैं वक़्त का दर्पन चाँद हवा और मैं

रंग का हाला ख़ुशबू का इक झोंका कुछ तो मिले
कब से हैं आवारा-ए-गुलशन चाँद हवा और मैं

परछाईं के पीछे भागे खोए ख़लाओं में
निकले आप ही अपने दुश्मन चाँद हवा और मैं
*ख़लाओं=शून्य, अंतराल

जाने किस की कौन है मंज़िल फिर भी हैं इक साथ
घूम रहे हैं तीनों बन बन चाँद हवा और मैं

उर्यानी का दोश किसे दें अपनी है तक़दीर
ख़ुद ही जला बैठे पैराहन चाँद हवा और मैं
*उर्यानी=वस्त्रहीन होने की अवस्था; पैराहन=वस्त्र

~ हामिद यज़दानी

Feb 22, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh


No comments:

Post a Comment