इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम
इश्क़ से मिट्टी की तस्वीरों में सोज़-ए-दम-ब-दम
* नवा-ए-ज़िंदगी=ज़िंदगी की आवाज़; ज़ेर-ओ-बम;उतार-चढ़ाव; सोज़-ए-दम-ब-दम= हलचल
आदमी के रेशे रेशे में समा जाता है इश्क़
शाख़-ए-गुल में जिस तरह बाद-ए-सहर-गाही का नम
* बाद-ए-सहर-गाही=सुबह के बाद
अपने राज़िक़ को न पहचाने तो मुहताज-ए-मुलूक
और पहचाने तो हैं तेरे गदा दारा ओ जम
*राज़िक=अन्नदाता; मुहताज-ए-मुलूक=राजपद से वंचित; गदा=भिखारी; दारा=राजा,ईश्वर; जम=रजा जमशेद
दिल की आज़ादी शहंशाही शिकम सामान-ए-मौत
फ़ैसला तेरा तिरे हाथों में है दिल या शिकम
*शिकम=पेट
ऐ मुसलमाँ अपने दिल से पूछ मुल्ला से न पूछ
हो गया अल्लाह के बंदों से क्यूँ ख़ाली हरम
~ अल्लामा इक़बाल
* नवा-ए-ज़िंदगी=ज़िंदगी की आवाज़; ज़ेर-ओ-बम;उतार-चढ़ाव; सोज़-ए-दम-ब-दम= हलचल
आदमी के रेशे रेशे में समा जाता है इश्क़
शाख़-ए-गुल में जिस तरह बाद-ए-सहर-गाही का नम
* बाद-ए-सहर-गाही=सुबह के बाद
अपने राज़िक़ को न पहचाने तो मुहताज-ए-मुलूक
और पहचाने तो हैं तेरे गदा दारा ओ जम
*राज़िक=अन्नदाता; मुहताज-ए-मुलूक=राजपद से वंचित; गदा=भिखारी; दारा=राजा,ईश्वर; जम=रजा जमशेद
दिल की आज़ादी शहंशाही शिकम सामान-ए-मौत
फ़ैसला तेरा तिरे हाथों में है दिल या शिकम
*शिकम=पेट
ऐ मुसलमाँ अपने दिल से पूछ मुल्ला से न पूछ
हो गया अल्लाह के बंदों से क्यूँ ख़ाली हरम
~ अल्लामा इक़बाल
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment