गढ़ो मत चाक पे रख के
कोई कूज़ा सुराही या घड़ा प्याला
तुम्हारी सोच के ये नक़्श हैं सारे
तुम्हारी ख़्वाहिशों के रंग भर दिलकश
हमें मिट्टी ही रहने दो
हमें कब चाहिए ऐसी अता
बख़्शी हुई सूरत
हमें मिट्टी ही रहने दो
जो नम बारिश से हो
ज़रख़ेज़ हो फ़स्लें उगाती हो
ज़रा सी बीज को पौदा बनाती हो
कि वो पौदा शजर बन कर
तुम्हारी रहगुज़र को छाँव देता है
वही रस्ता तुम्हारी मंज़िलें आसान करता है
हमें मिट्टी ही रहने दो
नुमाइश के सजावट के
हमें सामान क्यूँ होना
नुमू से क्यूँ हमें महरूम करते हो
तुम्हारे पाँव के नीचे ज़मीं क़ाएम रहे जानाँ
हमें मिट्टी ही रहने दो
~ कहकशाँ तबस्सुम
Feb 02, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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