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Tuesday, December 20, 2022

गो ज़रा सी बात पर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए

गर्मी-ए-महफ़िल फ़क़त इक नारा-ए-मस्ताना है
और वो ख़ुश हैं कि इस महफ़िल से दीवाने गए
*नारा-ए-मस्ताना=मस्ती मे कही हुई बात

मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़्साने गए

वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गईं
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
*वहशत=पागलपन

यूँ तो वो मेरी रग-ए-जाँ से भी थे नज़दीक-तर
आँसुओं की धुँद में लेकिन न पहचाने गए

अब भी उन यादों की ख़ुश्बू ज़ेहन में महफ़ूज़ है
बार-हा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गए
*महफ़ूज़=सुरक्षित

क्या क़यामत है कि 'ख़ातिर' कुश्ता-ए-शब थे भी हम
सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
*कुश्ता-ए-शब=जिसका रात मे वध करना तय हो

~  ख़ातिर ग़ज़नवी

Dec 20, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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