दिया गया संदर्भ सही पर
अवसर और प्रसंग ग़लत है ।
भाव, अमूर्त और अशरीरी
वह अनुभव की वस्तु रहा है
चित्र न कर पाया रूपायित
शब्दों ने ही उसे कहा है
उसका कल्पित रूप सही पर
दृश्यमान हर रंग ग़लत है ।
जब विश्वास सघन होता तब
संबंधो का मन बनता है
गगन तभी भूतल बनता है
भूतल तभी गगन बनता है
सही, प्रेम में प्रण करना पर
करके प्रण, प्रण-भंग ग़लत है ।
संस्तुति, अर्थ, कपट से पायी
जो भी हो उपलब्धि हीन है
ऐसा, तन से उजला हो पर
मन से वह बिलकुल मलीन है
शिखर लक्ष्य हो, सही बात पर
उसमें चोर-सुरंग ग़लत है ।
*अमूर्त=निराकार; रूपायित=जिसने कोई रूप प्राप्त किया हो; संस्तुति=प्रशंसा; अर्थ=धन; मलीन=मैला
~ चंद्रसेन विराट
Jun 2, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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