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Friday, June 1, 2018

खुले पानियों में घिरी लड़कियाँ

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खुले पानियों में घिरी लड़कियाँ
नर्म लहरों के छींटे उड़ाती हुई
बात-बे-बात हँसती हुई
अपने ख़्वाबों के शहज़ादों का तज़्किरा (बात चीत) कर रही थीं
जो ख़ामोश थीं
उन की आँखों में भी मुस्कुराहट की तहरीर (लिखावट) थी
उन के होंटों को भी अन-कहे ख़्वाब का ज़ाइक़ा चूमता था!
आने वाले नए मौसमों के सभी पैरहन (लिबास) नीलमीं हो चुके थे!
दूर साहिल पे बैठी हुई एक नन्ही सी बच्ची
हमारी हँसी और मौजों के आहंग (इरादे) से बे-ख़बर
रेत से एक नन्हा घरौंदा बनाने में मसरूफ़ थी
और मैं सोचती थी
ख़ुदा-या! ये हम लड़कियाँ
कच्ची उम्रों से ही ख़्वाब क्यूँ देखना चाहती हैं
ख़्वाब की हुक्मरानी (हुकूमत) में कितना तसलसुल (नियमितता) रहा है!

~ परवीन शाकिर

  Jun 1, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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