तुझे याद करते करते
तिरी राह तकते तकते
मिरे अजनबी मुसाफ़िर
कई दिन गुज़र गए हैं
कोई शाम आ रही है:
कोई ख़ुशनुमा सितारा जो फ़लक (आसमान) पे हँस रहा है
किसी मह-जबीं (चाँदे से माथे) की सूरत
जो नज़र को डस रहा है
वही एक इस्तिआ'रा (रूपक)
तिरी याद रहगुज़र पर मिरा हम-सफ़र बना है
वही इक ज़िया (रौशनी)सलामत
सर-ए-शाम तीरगी (अँधेरा) में
मिरे काम आ रही है
मिरे रास्ते के आगे
किसी रात का गुज़र है
कहीं वहम सर-ब-सर (सम्पूर्ण) है
कहीं ख़ौफ़ का असर है
कहीं सरसराहटें हैं
कहीं झुनझुनाहटें हैं
नहीं दश्त-ए-हू (वीरान जंगल) में आहू (हिरन)
नहीं जंगलों में जुगनू
तिरी याद वो खिलौना जिसे तोड़ भी न पाऊँ
कहीं छोड़ भी न पाऊँ
अभी निस्फ़ (आधी) शब है गुज़री
तुझे याद कर रहा हूँ तिरे ख़्वाब देखता हूँ
यही जिस्म है बिछौना इसी जाँ को ओढ़ना है
हुई सुब्ह दर पे दस्तक
तिरे ख़्वाब जा चुके हैं
तिरी याद भी है रुख़्सत
नई आरज़ू खड़ी है
नए लोग मिल गए हैं
मिरे सामने हज़ारों
नए काम आ पड़े हैं
इसी दरमियाँ तसव्वुर (कल्पना) तिरा बार बार आया
इसी रास्ते पे जानाँ
कोई शाम फिर है आई
तिरी याद नूर-पैकर (रौशनी का आकार)
तिरी क़ुर्बतों (नज़दीकियोँ) का साया
कहीं तीरगी में गुम है
मैं अज़ान दे रहा हूँ
किसी दश्त-ए-बे-अमाँ (वीरान बंजर) में
~ खुर्शीद अकबर
Jun 24, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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