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Saturday, July 21, 2018

जब चले जाएँगे हम लौट के

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जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह 
याद आएँगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह 

ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उन की गली में मेरा 
जाने शरमाए वो क्यूँ गाँव की दुल्हन की तरह 

मेरे घर कोई ख़ुशी आती तो कैसे आती
उम्र-भर साथ रहा दर्द महाजन की तरह

कोई कंघी न मिली जिस से सुलझ पाती वो
ज़िंदगी उलझी रही ब्रम्हा के दर्शन की तरह

दाग़ मुझ में है कि तुझमें ये पता तब होगा
मौत जब आएगी कपड़े लिए धोबन की तरह

हर किसी शख़्स की क़िस्मत का यही है क़िस्सा
आए राजा की तरह जाए वो निर्धन की तरह

जिस में इंसान के दिल की न हो धड़कन 'नीरज'
शाइ'री तो है वो अख़बार के कतरन की तरह

~ गोपालदास नीरज


  Jul 20, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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