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Sunday, July 1, 2018

कुछ होश नहीं, कुछ होश नहीं

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कुछ होश नहीं, कुछ होश नहीं

जब दर्द की लहरें डूब गईं
जब आँखें चेहरा भूल गईं
तुम सोच के आँगन में कैसे
फिर याद के घुँगरू ले आए
मैं कैसी महक से पागल हूँ
फिर रक़्स-ए-जुनूँ में शामिल हूँ
कुछ होश नहीं, कुछ होश नहीं



फिर चेहरा चेहरा तेरा चेहरा
फिर आँख में तेरी आँखों का
पुर-कैफ़ नज़ारा झूम उठा
फिर सारा ज़माना झूम उठा
कब रात गई कब दिन जागा

कुछ होश नहीं, कुछ होश नहीं

~ ख़ालिद मलिक साहिल

  Jul 01, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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