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Wednesday, July 4, 2018

जश्न

Image may contain: sky, fireworks, night, cloud and outdoor

जश्न-ए-नौरोज़ भी है
जश्न-ए-बहाराँ भी है
शब-ए-महताब (चाँद रात) भी
जश्न-ए-मह-ए-ताबाँ (चमकता चाँद) भी है
सुनते हैं
आज ही जश्न-ए-शह-ए-ख़ूबाँ (अच्छा राजा) भी है

आइए ऐ दिल-ए-बर्बाद
चलें हम भी वहाँ
जश्न की रात है
सौग़ात तो बटती होगी
अपने हिस्से की
चलें हम भी उठा लें सौग़ात
दर्द की
आख़िरी सीने से लगा लें सौग़ात
और फिर यूँ हो
कि जब शाम ढले
ओस में भीग के
गुल-मोहर की ख़ुश्बू फैले
याद की चाँदनी
बे-ख़्वाब दरीचों (खिड़कियों) पे गिरे
फिर उसी जश्न की
ये रात मिरे काम आए
दर्द की आख़िरी सौग़ात
मिरे काम आए
आख़िर शब
शब-ए-आख़िर ठहरे
ज़िद पे आया हुआ ये दिल ठहरे

तोड़ दूँ शीशा
जो हस्ती का भी फिर जाम आए
काम आए
तो ये सौग़ात मिरे काम आए
जश्न की रात है
यूँ नज़्र गुज़ारी जाए
एक इक आरज़ू सदक़े (चढ़ावे) में उतारी जाए

~ नसीम सय्यद


  Jul 04, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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