तुम ने जो फूल
मुझे रुख़्सत होते वक़्त दिया था
वो नज़्म मैं ने
तुम्हारी यादों के साथ
लिफ़ाफ़े में बंद कर के रख दी थी
आज दिनों बाद
बहुत अकेले में उसे खोल कर देखा है
फूल की नौ पंखुड़ियाँ हैं
नज़्म के नौ मिसरे।
यादें भी कैसी अजीब होती हैं
पहली पंखुड़ी याद दिलाती है उस लम्हे की जब मैं ने
पहली बार तुम्हें भरी महफ़िल में
अपनी तरफ़ मुसलसल तकते हुए देख लिया था
दूसरी पंखुड़ी,
जब हम पहली बार एक दूसरे को कुछ कहे बग़ैर
बस यूँही जान बूझ कर नज़र बचाते हुए
एक राहदारी से गुज़र गए थे
~ इफ़्तिख़ार आरिफ़
Jun 1, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
मुझे रुख़्सत होते वक़्त दिया था
वो नज़्म मैं ने
तुम्हारी यादों के साथ
लिफ़ाफ़े में बंद कर के रख दी थी
आज दिनों बाद
बहुत अकेले में उसे खोल कर देखा है
फूल की नौ पंखुड़ियाँ हैं
नज़्म के नौ मिसरे।
यादें भी कैसी अजीब होती हैं
पहली पंखुड़ी याद दिलाती है उस लम्हे की जब मैं ने
पहली बार तुम्हें भरी महफ़िल में
अपनी तरफ़ मुसलसल तकते हुए देख लिया था
दूसरी पंखुड़ी,
जब हम पहली बार एक दूसरे को कुछ कहे बग़ैर
बस यूँही जान बूझ कर नज़र बचाते हुए
एक राहदारी से गुज़र गए थे
~ इफ़्तिख़ार आरिफ़
Jun 1, 2019 | e-kavya.blogspot.com
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