हवा उड़ाए रेशम बादल के पर्दे
छन छन कर पेड़ों से उतरें रौशनियाँ
जैसे अचानक बच्चों को आ जाए हँसी
जंगल तीरा-बख़्त नहीं
*तीरा-बख़्त=अभागा;
छन छन कर छितनार से बरसो रौशनियो
पौदों की रग रग में तैरो रौशनियो
जंगल के सीने के कोनों-खुदरों में
दबे हुए असरार बहुत
ख़्वाब-गज़ीदा नशे में सरशार बहुत
नींद नगर को तजने पुर इसरार बहुत
कोंपल कोंपल फूटने पे तय्यार बहुत
*छितनार=घनी; असरार=भेद; ख़्वाब-गज़ीदा=सपनों से त्रसित; सरशार=मस्त;
बूढे पेड़ न रस्ता रोको
उन ख़्वाबों को जी लेने दो
छन छन कर छितनार से बरसो रौशनियो
इस मा'सूम हँसी में गरचे रब्त नहीं
पल-भर में आँसू बिन जाएँ ज़ब्त नहीं
इस मोती के क़ल्ब में उतरो रौशनियो
और चमक उस की चमकाओ रौशनियो
*गरचे=अगर; रब्त=सम्बंध; कल्ब=दिल
नगर नगर में तुम सा नाज़ुक लम्स न पाऊँ
किरन किरन के लेकिन बरसों बोझ उठाऊँ
*लम्स=स्पर्श
~ अबरारूल हसन
Jun 28, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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