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Sunday, June 9, 2019

अब के दीवार में दरवाज़ा रखूँ

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अब के दीवार में दरवाज़ा रखूँ या न रखूँ
अजनबी फिर न कोई दरपय-ए-आज़ार आ जाए
एक दस्तक में मिरी सारी फ़सीलें ढा जाए
अब के दीवार में दरवाज़ा रक्खूँ या न रखूँ

*आज़ार=रोग, तक़लीफ़; फ़सीलें=किले की दीवारें

एक अहराम न चुन लूँ सिफ़त-ए-दूद-ए-हरीर
कोई आए तो बस इक गुम्बद-ए-दर-बस्ता मिले
राज़-ए-सर-बस्ता मिले
लाख सर फोड़े सदा कोई न मुझ तक पहुँचे
क़ासिद-ए-मौज-ए-हवा कोई न मुझ तक पहुँचे
अब के दीवार में दरवाज़ा रक्खूँ या न रखूँ

*अहराम=पिरामिड; सिफ़त-ए-दूद-ए-हरीर=रेशमी धुयें से बना; गुम्बद-ए-दर-बस्ता=बंद दरवाज़ों वाला गुम्बद; क़ासिद-ए-मौज-ए-हवा=संदेश वाहक या हवा का झोंका सारे अंदेशे मगर एक तरफ़

एक तरफ़ तेरी उम्मीद
जाने किस वक़्त इधर तेरी सवारी आ जाए
अजनबी लाख कोई मेरी फ़सीलें ढा जाए
मुझ को दीवार में दरवाज़ा लगाना होगा


~ ख़ुर्शीद रिज़वी

 Jun 9, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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