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Saturday, March 11, 2017

प्यार जब मँझधार से हो ...

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प्यार जब मँझधार से हो तो किनारा कौन माँगे?

बाहुओँ में भर रहा हूं मैं हिलोरों की रवानी,
है हिलोरों से बहुत मिलती हुई मेरी जवानी,
जन्म है उठती लहर सा, है मरण गिरती लहर सा,
जिंदगी है जन्म से ले कर मरण तक की कहानी।

चूमने दो ओंठ लहरों के मुझे निश्शंक हो कर
डूबना ही इष्ट हो जब, तो सहारा कौन मांगे?

श्याम मेघों से घिरा नक्षत्र विहँगों का बसेरा,
आधियों ने डाल रखा है क्षितिज पर घोर घेरा,
जिस तरह से भग्न अंतर में उमड़ती है निराशा,
ठीक वैसे ही उमड़ता आ रहा नभ में अँधेरा।

जब कि चाहें प्राण बरसाती अंधेरे में भटकना,
पथ-प्रदर्शन के लिए तो ध्रुव सितारा कौन मांगे?

जिंदगी का दीप लहरों पर सदा बहता रहा है,
निज हृदय से ही हृदय की बात यह कहता रहा है,
डगमगाती ज्योति में विश्वास जीवन के संजोये,
मौन जल स्नेह का अभिशाप यह सहता रहा है।

जब मरण की आँधियों से प्यार इसको हो गया है,
ओट पाने के लिए आँचल तुम्हारा कौन माँगे?

प्यार जब मँझधार से हो तो किनारा कौन मांगे?

~ गोरख नाथ


  Mar 5, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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