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Saturday, March 11, 2017

मेरे राम जी

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चाल मुझ तोते की बुढ़ापे में बदल गई
बदली कहां है मेरी तोती मेरे राम जी
बहुएँ हैं घर में‚ मगर निज धोतियों को
खुद ही रगड़ कर धोती मेरे राम जी
फँसी रही मोह में जवानी से बुढ़ापे तक
तोते पे नज़र कब होती मेरे राम जी
पहले तो पाँच बेटी–बेटों को सुलाया साथ
अब सो रहे हैं पोती–पोते मेरे राम जी।

चढ़ती जवानी मेरी चढ़के उतर गई
ढलती उमरिया ने मारा मेरे राम जी
स्वर्ण–भस्म खाई‚ कहां लौट के जवानी आई
बाल डाई कर के मैं हारा मेरे राम जी
कानों से यूँ थोड़ा–थोड़ा देता है सुनाई मुझे
सुनते ही क्यों न चढ़े पारा मेरे राम जी
आज के जमाने की रे नई–नई मारुतियाँ
बोलती हैं मुझको खटारा मेरे राम जी।

छरहरि काया मेरी जाने कहाँ छूट गई
छाने लगा मुझपे मोटापा मेरे राम जी
मारवाड़ी सेठ जैसा पेट मेरा फूल गया
कल को पड़े न कहीं छापा मेरे राम जी
घर में वो चैन कहाँ‚ रस–भरे बैन कहाँ
खो न बैठूं किसी दिन आपा मेरे राम जी
मेरी बुढ़िया भी बेट–बेटियों की देखा देखी
मुझको पुकारती हे पापा मेरे राम जी।

∼ अल्हड़ बीकानेरी


  Mar 3, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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