
युक्ति के सारे नियंत्रण तोड़ डाले‚
मुक्ति के कारण नियम सब छोड़ डाले‚
अब तुम्हारे बंधनों की कामना है।
विरह यामिनि में न पल भर नींद आयी‚
क्यों मिलन के प्रात वह नैनों समायी‚
एक क्षण में ही तो मिलन में जागना है।
यह अभागा प्यार ही यदि है भुलाना‚
तो विरह के वे कठिन क्षण भूल जाना‚
हाय जिनका भूलना मुझको मना है।
मुक्त हो उच्छ्वास अंबर मापता है‚
तारकों के पास जा कुछ कांपता है‚
श्वास के हर कम्प में कुछ याचना है।
∼ रघुवीर सहाय
Feb 28, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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