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Saturday, March 11, 2017

इन सपनों के पंख न काटो

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इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो?

सौरभ उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौ कहाँ आता है?
धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड पाता है?
अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँड़राता है।
सपनों में दोनों ही गति है
उड़कर आँखों में ही आता है।
इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो।

मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।
स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा।
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो?
इन सपनों के पोख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो।

‍~ महादेवी वर्मा


  Mar 7, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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