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Saturday, March 11, 2017

बात

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उस से क्या छुप सके बनाई बात
ताड़ जाए जो दिल की आई बात

कहिए गुज़री है एक साँ किस की
कभी बिगड़ी कभी बन आई बात

रहे दिल में तो है वो बात अपनी
मुँह से निकली हुई पराई बात

मैं समझता हूँ ये नई चालें
कभी छुपती नहीं सिखाई बात

कह दिया अपने दिल को ख़ुद बे-रहम
छीन ली मेरे मुँह की आई बात

रख लिया आशिक़ों ने नाम-ए-वफ़ा
गई जाँ पर न जाने पाई बात

रंग बिगड़ा है उन की सोहबत का
अब नहीं है वो इब्तिदाई बात
*इब्तिदाई=शुरुआत

मुझ से बे-वज्ह होते हो बद-ज़न
कर के बावर सुनी-सुनाई बात
*बद-ज़न=ना ख़ुश; बावर=विश्वास

क्या हो उन का मिज़ाज-दाँ कोई
रूठना खेल है लड़ाई बात
*मिज़ाज-दाँ=जिसकी आदतें पता हो

ग़ैर का ज़िक्र गर न था साहब
मेरे आते ही क्यूँ उड़ाई बात

दिल में रखता है ख़ूब सुन के 'हबीब'
चाहे अपनी हो या पराई बात

~ हबीब मूसवी

  Mar 6, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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