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Saturday, May 6, 2017

स्वजन दीखता न विश्व में अब

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स्वजन दीखता न विश्व में अब,
न बात मन में समाय कोई।
पड़ी अकेली विकल रो रही,
न दुःख में है सहाय कोई।।

पलट गए दिन स्नेह वाले,
नहीं नशा, अब रही न गर्मी ।
न नींद सुख की, न रंगरलियाँ,
न सेज उजला बिछाए सोई ।।

बनी न कुछ इस चपल चित्त की,
बिखर गया झूठ गर्व जो।
था असीम चिन्ता चिता बनी है,
विटप कँटीले लगाए रोई ।।

क्षणिक वेदना अनन्त सुख बस,
समझ लिया शून्य में बसेरा ।
पवन पकड़कर पता बताने
न लौट आया न जाए कोई।।

~ जयशंकर प्रसाद


  May 4, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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