सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
जगती के मन को खींच खींच
निज छवि के रस से सींच सींच
जल कन्यांएं भोली अजान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
प्रातः समीर से हो अधीर
छू कर पल पल उल्लसित तीर
कुसुमावली सी पुलकित महान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
संध्या से पा कर रुचिर रंग
करती सी शत सुर चाप भंग
हिलती नव तरु दल के समान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
करतल गत उस नभ की विभूति
पा कर शशि से सुषमानुभूति
तारावलि सी मृदु दीप्तिमान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
तन पर शोभित नीला दुकूल
है छिपे हृदय में भाव फूल
आकर्षित करती हुई ध्यान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
∼ ठाकुर गोपाल शरण सिंह
Apr 24, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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