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Friday, May 18, 2018

देर लगी आने में तुम को

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देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो

शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो
*शफ़क़=साँझ का धुँधलका; धनक=इंद्रधनुष; महताब=चाँद

चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो

क्यूँ ये मेहर-अंगेज़ तबस्सुम मद्द-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं
हाए कोई अंजान अगर इस धोके में आ जाए तो
*मेहर-अंगेज़=मोहब्बत से भरी; तबस्सुम=मुस्कान; मद्द-ए-नज़=आँखों के सामने

सुनी-सुनाई बात नहीं ये अपने उपर बीती है
फूल निकलते हैं शो'लों से चाहत आग लगाए तो

झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दोहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
*ख़्वाब-ए-जवानी=जवानी के सपने

नादानी और मजबूरी में यारो कुछ तो फ़र्क़ करो
इक बे-बस इंसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो

~ अंदलीब शादानी


  May 18, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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