किन ख़यालात में यूँ रहती हो खोई खोई
चाय का पानी पतीली में उबल जाता है
राख को हाथ लगाती हो तो जल जाता है
एक भी काम सलीक़े से नहीं हो पाता
एक भी बात मोहब्बत से नहीं कहती हो
अपनी हर एक सहेली से ख़फ़ा रहती हो
रात भर नाविलें पढ़ती हो न जाने किस की
एक जंपर नहीं सी पाई हो कितने दिन से
भाई का हाथ भी ग़ुस्से से झटक देती हो
मेज़ पर यूँ ही किताबों को पटक देती हो
किन ख़यालात में यूँ रहती हो खोई खोई
~ कफ़ील आज़र अमरोहवी
May 16, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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