तुम अधूरी बात सुनकर चल दिए!
जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है
जो सुना तुमने अभी तक, अनसुना इससे अधिक है
मैं तुम्हारी और अपनी ही कहानी लिख रहा था
वक़्त ने जो की थी मुझ पे मेहरबानी लिख रहा था
पत्र मेरा अन्त तक पढ़ते तो ये मालूम होता
मैं तुम्हारे नाम अपनी ज़िन्दगानी लिख रहा था
तुम अधूरा पत्र पढ़कर चल दिए-
जो पढ़ा तुमने अभी तक, अनपढ़ा इससे अधिक है
प्रार्थना में लग रहा कोई कमी फिर रह गई है
हँस रहा हूँ किन्तु पलकों पर नमी फिर रह गई है
फिर तुम्हारी ही क़सम ने इस क़दर बेबस किया
ज़िन्दगी हैरान मुझको देखती फिर रह गई है
भाग्य-रेखाओं में मेरी आज तक-
जो लिखा तुमने अभी तक, अनलिखा इससे अधिक है
हो ग़मों की भीड़ फिर भी मुस्कुराऊँ, सोचता हूँ
मैं किसी को भूलकर भी याद आऊँ, सोचता हूँ
कोई मुझको आँसुओं की तरह पलकों पर सजाए
और करे कोई इशारा, टूट जाऊँ सोचता हूँ
ज़िन्दगी मुझसे मिली कहने लगी-
जो गुना तुमने अभी तक, अनगुना इससे अधिक है
यूँ तो शिखरों से बड़ी ऊँचाईयों को छू लिया है
छूने को पाताल-सी गहराईयों को छू लिया है
विष भरी बातें हँसी जब बींध कर मेरे ह्रदय को
ख़ुश्बुएँ छू कर लगा अच्छाईयों को छू लिया है
तुम मिले जिस पल मुझे ऐसा लगा-
जो छुआ मैंने अभी तक, अनछुआ इससे अधिक है
तुम अधूरी बात सुनकर चल दिए!
जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है
जो सुना तुमने अभी तक, अनसुना इससे अधिक है
~ दिनेश रघुवंशी
May 6, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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