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Saturday, October 20, 2018

उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं

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उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है
वहाँ रंगीनियाँ कोहसार के दामन में सोती हैं
गुलों की निकहतें हर चार-सू आवारा होती हैं
वहाँ नग़्मे सबा की नर्म-रौ मौजों में बहते हैं
वहाँ आब-ए-रवाँ में मस्तियों के रक़्स रहते हैं

*उफ़ुक़=क्षितिज; कोहसार-पर्वतों; निकहत=ख़ुशबू; सू=दिशा; आब-ए-रवाँ=बहता पानी; रक़्स-नृत्य

वहाँ है एक दुनिया-ए-तरन्नुम आबशारों में
वहाँ तक़्सीम होता है तबस्सुम लाला-ज़ारों में
सुनहरी चाँद की किरनें वहाँ रातों को आती हैं
वहाँ परियाँ मोहब्बत के बे-ख़ौफ़ गीत गाती हैं

*आबशारों=झरने; तक़्सीम=बँटता; लाला-ज़ारों=फूलों के बाग़

वहाँ के रहने वालों को गुनह करना नहीं आता
ज़लील ओ मुब्तज़िल जज़्बात से डरना नहीं आता
वहाँ अहल-ए-मोहब्बत का न कोई नाम धरता है
वहाँ अहल-ए-मोहब्बत पर न कोई रश्क करता है

*ज़लील=अपमानित; मुब्तज़िल=अशिष्ट, अहल-ए-मोहब्बत=प्रेम के लोग; रश्क-ईर्ष्या

मोहब्बत करने वालों को वहाँ रुस्वा नहीं करते
मोहब्बत करने वालों का वहाँ चर्चा नहीं करते
हम अक्सर सोचते हैं तंग आ कर कहीं चल दें
मिरी जाँ! ऐ मिरे ख़्वाबों की दुनिया चल वहीं चल दें
*रुस्वा=अपमानित

उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है

~ नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास

  Oct 20, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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