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Friday, October 26, 2018

इक शहंशाह ने बनवा के

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इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है
इस के साए में सदा प्यार के चर्चे होंगे
ख़त्म जो हो न सकेगी वो कहानी दी है

ताज वो शम्अ है उल्फ़त के सनम-ख़ाने की
जिस के परवानों में मुफ़्लिस भी हैं ज़रदार भी हैं
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख़्वाबों की क़सम
मरहले प्यार के आसाँ भी हैं दुश्वार भी हैं
दिल को इक जोश इरादों को जवानी दी है
*मुफ़्लिस=ग़रीब; अरदार=दौलमंद; मरहले= ठिकाने

ताज इक ज़िंदा तसव्वुर है किसी शाएर का
उस का अफ़्साना हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं
इस के आग़ोश में आ कर ये गुमाँ होता है
ज़िंदगी जैसे मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
ताज ने प्यार की मौजों को रवानी दी है
*तसव्वुर=कल्पना;

ये हसीं रात ये महकी हुई पुर-नूर फ़ज़ा
हो इजाज़त तो ये दिल इश्क़ का इज़हार करे
इश्क़ इंसान को इंसान बना देता है
किस की हिम्मत है मोहब्बत से जो इंकार करे
आज तक़दीर ने ये रात सुहानी दी है
*पुर-नूर=रौशन; फ़ज़ा=वातावरण

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

~ शकील बदायूँनी

  Oct 26, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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