रौशनी डूब गई चाँद ने मुँह ढाँप लिया
अब कोई राह दिखाई नहीं देती मुझ को
मेरे एहसास में कोहराम मचा है लेकिन
कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
रात के हाथ ने किरनों का गला घूँट दिया
जैसे हो जाए ज़मीं-बोस शिवाला कोई
ये घटा-टोप अँधेरा ये घना सन्नाटा
अब कोई गीत है बाक़ी न उजाला कोई
*ज़मीं-बोस=ज़मीन को चूमता हुआ
जिस ने छुप-छुप के जलाया मिरी उम्मीदों को
वो सुलगती हुई ठंडक मिरे घर तक पहुँची
देखते देखते सैलाब-ए-हवस फैल गया
मौज-ए-पायाब उभर कर मिरे सर तक पहुँची
*सैलाब-ए-हवस=लालसा का ज्वार; मौज-ए-पायाब=नीची रहने वाली लहर
मिरे तारीक घरौंदे को उदासी दे कर
मुस्कुराते हैं दरीचों में इशारे क्या क्या
उफ़ ये उम्मीद का मदफ़न ये मोहब्बत का मज़ार
इस में देखे हैं तबाही के नज़ारे क्या क्या
*तारीक़=अंधेरे; दरीचों=खिड़कियाँ; मदफ़न=दफ़न करने की जगह
जिस ने आँखों में सितारे से कभी घोले थे
आज एहसास पे काजल सा बिखेरा उस ने
जिस ने ख़ुद आ के टटोला था मिरे सीने को
ले लिया ग़ैर के पहलू में बसेरा उस ने
वो तलव्वुन कि नहीं जिस का ठिकाना कोई
उस के अंदाज़-ए-कुहन आज नए तौर के हैं
वही बेबाक इशारे वही भड़के हुए गीत
कल मिरे हाथ बिके आज किसी और के हैं
*तलव्वुन=रंग बदलना; अंदाज़-ए-कुहन=पुराने अंदाज़
वो महकता सा चहकता सा उबलता सीना
उस की मीआद है दो रोज़ लिपटने के लिए
ज़ुल्फ़ बिखरी हुई बिखरी तो नहीं रह सकती
फैलता है कोई साया तो सिमटने के लिए
*मीआद=अवधि
~ क़तील शिफ़ाई
Dec 22, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment